Sunday 11 July 2021

गुरु तेग़ बहादुर


गुरु तेग़ बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु थे। गुरु तेगबहादुरजी को प्रेम से - ‘हिन्द की चादर’ भी कहा जाता है। उनकी बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे।

जन्म

गुरु तेग़ बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर, पंजाब मे हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था। वे अपने माता – पिता की पाँचवीं संतान थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था l

शिक्षा – दीक्षा

गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई। इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेगबहादुर जी को गुरु बनाया गया था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया।

युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग़ बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की। आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए ‘बाबा बकाले’ का निर्देश दिया। गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।

इसके बाद गुरु तेग़ बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोविंद सिंह बने।

लेखन कार्य

गुरु तेग़ बहादुर जी की बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। सन् 1675 में गुरु जी धर्म की रक्षा के लिए अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपने चार शिष्यों के साथ धार्मिक और वैचारिक स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए। उनके अद्वितीय बलिदान ने देश की ‘सर्व धर्म सम भाव’ की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र भी दिया।

गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की गाथा

एक समय की बात है। औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया किंतु उसे उन श्लोकों के बारे में बताना भूल गया जिनका अर्थ वहां नहीं करना था।

उसके बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया जिससे औरंगजेब को यह स्पष्ट हो गया कि हर धर्म अपने आपमें एक महान धर्म है। पर औरंगजेब खुद के धर्म के अलावा किसी और धर्म की प्रशंसा नहीं सुन सकता था। उसके सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि वह सबको इस्लाम धारण करवा दे। औरंगजेब को यह बात समझ में आ गई और उसने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया और कुछ लोगों को यह कार्य सौंप दिया।

उसने कहा कि सबसे कह दिया जाए कि इस्लाम धर्म कबूल करो या मौत को गले लगाओ। जब इस तरह की जबरदस्ती शुरू हो गई तो अन्य धर्म के लोगों का जीना मुश्किल हो गया। इस जुल्म के शिकार कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस तरह ‍इस्लाम धर्म स्वीकारने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं। हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है। जहां से हम पानी भरते हैं वहां हड्डियां फेंकी जाती है। हमें बुरी तरह मारा जा रहा है। कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए।

जिस समय यह लोग समस्या सुना रहे थे उसी समय गुरु तेगबहादुर के नौ वर्षीय सुपुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहां आए और पिताजी से पूछा- पिताजी यह लोग इतने उदास क्यों हैं? आप इतनी गंभीरता से क्या सोच रहे हैं?

गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्या बताई तो बाला प्रीतम ने कहा- इसका निदान कैसे होगा? गुरु साहिब ने कहा- इसके लिए बलिदान देना होगा। बाला प्रीतम ने कहा कि आपसे महान पुरुष मेरी नजर में कोई नहीं है, भले ही बलिदान देना पड़े पर आप इनके धर्म को बचाइए।

उसकी यह बात सुनकर वहां उपस्थित लोगों ने पूछा- अगर आपके पिता जी बलिदान दे देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएगी। बालक ने कहा कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।

फिर गुरु तेगबहादुर ने उन पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह ‍दो ‍अगर गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे और तुम हम पर जबरदस्ती नहीं कर पाओगे। औरंगजेब ने इस बात को स्वीकार कर लिया।

गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं चलकर गए। वहां औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। लेकिन बात नहीं बनी तो उन पर बहुत सारे जुल्म किए। उन्हें कैद कर लिया गया इसके उनके दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की, पर गुरु तेगबहादुर टस से मस नहीं हुए।

उन्होंने औरंगजेब को समझाइश दी कि अगर तुम जबरदस्ती करके लोगों को इस्लाम धारण करने के लिए मजबूर कर रहे हो तो यह जान लो कि तुम खुद भी सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि तुम्हारा धर्म भी यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म किया जाए। औरंगजेब को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु साहिब के शीश को काटने का हुक्म दे दिया।

बलिदान

 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चाँदनी चौक पर गुरु तेग़ बहादुर जी का शीश काट दिया गया। गुरु तेग़ बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है।

Source https://jivanihindi.com/guru-tegh-bahadur-biography-hindi/


3 comments:

  1. सर्वप्रथम गुरु तेगबहादुरजी के स्वरूप और स्मृति को वन्दन अभिनं दन !
    ऐसे महापूर्वजों से हम सबको सबक लेना चाहिए कि हम सब मनुष्य हैं ...क्षमता और पराक्रम से भरे। अपने समय और युग की बुराइयों से हम आँख फेर लेने से महान नहीं हो सकते। अनीति अनर्थ अन्याय का विरोध करना एक मनुष्य का सबसे प्रथम कर्त्तव्य है। मेरे मन में सवाल उठता है कि गुरु के शीश को आततायी अधम इस्लामी शासकों ने काटा तो देश की जनता और अन्य महान वीरों शासकों ने विद्रोह क्यों न किया? तलवारें बरछे तीर धनुष कृपाण क्यों न निकलीं? आज भी चारों तरफ जब झूठ अनीति और भ्रष्टाचार देखते हैं तब हम क्यों मौन रहते हैं? गुरु का नाम केवल स्मरण के लिए है? गुरु का नाम तो उनके कर्मों और संदेश को अपनी ज़िंदगी में अपनाने के लिए है।
    मैं शपथबद्ध हूँ कि जब तक जीवित हूँ इस धरती पर किसी अन्याय और अनीति को सहन नहीं करूँगा। अन्याय और अनीति के विरुद्ध पूरी ताक़त से,शब्द से कृति से लड़ूँगा। शत्रु कितना भी बड़ा क्यों न हो उसके छल,कपट,अन्याय,अनीति,भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद करने का अटल संकल्प है। यही गुरु तेगबहादुरजी के प्रति मेरी सच्ची साध है,मेरी श्रद्धा है। तेगबहादुर जी कक स्मृति भारतवर्ष के रक्त में हॄदय में अस्तित्त्व में समाहित है।
    गुरुतेगबहादुर जी की स्मृति अमर रहे!!💐💐💐💐

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  2. सर्वप्रथम गुरु तेगबहादुरजी के स्वरूप और स्मृति को वन्दन अभिनं दन !
    ऐसे महापूर्वजों से हम सबको सबक लेना चाहिए कि हम सब मनुष्य हैं ...क्षमता और पराक्रम से भरे। अपने समय और युग की बुराइयों से हम आँख फेर लेने से महान नहीं हो सकते। अनीति अनर्थ अन्याय का विरोध करना एक मनुष्य का सबसे प्रथम कर्त्तव्य है। मेरे मन में सवाल उठता है कि गुरु के शीश को आततायी अधम इस्लामी शासकों ने काटा तो देश की जनता और अन्य महान वीरों शासकों ने विद्रोह क्यों न किया? तलवारें बरछे तीर धनुष कृपाण क्यों न निकलीं? आज भी चारों तरफ जब झूठ अनीति और भ्रष्टाचार देखते हैं तब हम क्यों मौन रहते हैं? गुरु का नाम केवल स्मरण के लिए है? गुरु का नाम तो उनके कर्मों और संदेश को अपनी ज़िंदगी में अपनाने के लिए है।
    मैं शपथबद्ध हूँ कि जब तक जीवित हूँ इस धरती पर किसी अन्याय और अनीति को सहन नहीं करूँगा। अन्याय और अनीति के विरुद्ध पूरी ताक़त से,शब्द से कृति से लड़ूँगा। शत्रु कितना भी बड़ा क्यों न हो उसके छल,कपट,अन्याय,अनीति,भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद करने का अटल संकल्प है। यही गुरु तेगबहादुरजी के प्रति मेरी सच्ची साध है,मेरी श्रद्धा है। तेगबहादुर जी की स्मृति भारतवर्ष के रक्त में हॄदय में अस्तित्त्व में समाहित है।
    गुरुतेगबहादुर जी की स्मृति अमर रहे!!💐💐💐💐
    सकल जगत में ख़ालसा पंथ गाजै
    जगै धर्म हिन्दू सकल भंड भाजै!!
    💐💐💐💐💐💐💐
    देहि शिवा बर मोहि यहै
    शुभ कर्मण सो कबहुँ न डरौं!!
    💐💐💐💐💐💐💐💐

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