Friday, 16 July 2021

मंगल पांडे

मंगल पांडे का जीवन वैसे तो मंगल पांडे की जन्म तिथि के विषय में कोई तिथि निश्चित नहीं है, लेकिन प्राप्त प्रमाणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था. मंगल पांडे की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गांव की पाठशाला में हुई. बाल्यावस्था में मंगल पाण्डे की रुचि शिक्षा की अपेक्षा खेलकूद व वीरता वाले कार्यो में ही थी. उनमें व्यावहारिक बुद्धि ज्यादा थी. उनके अंदर साहस और वीरता की प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी. मंगल पांडे 18 साल की उम्र में 1849 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से जुड़े. मंगल कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नैटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के 1446 नंबर के सिपाही थे.

1857 की लड़ाई इसकी नीव उस समय पड़ी जब सिपाहियों को 1853 में एनफील्ड पी 53 नामक बंदूक दी गई. यह बंदूक पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी. नयी एनफील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को पहले दांतों से काट कर खोलना पडता था और उसमें भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस में डालना पड़ता था. कारतूस के बाहरी आवरण मे चर्बी होती थी जो कि उसे नमी अर्थात पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच तेजी से यह अफवाह फैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है जो हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों, दोनों की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध था.

वैसे अंग्रेजी सेना में सिपाहियों की नैतिक-धार्मिक भावनाओं का अनादर पहले भी किया जाता था लेकिन इस घटना ने भारतीयों को काफी आहत किया. मंगल पांडे सहित अधिकतर भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली तथा कारतूसों का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया लेकिन अंग्रेजी हुकूमत भी अपनी जिद पर अड़ी थी. मंगल पांडे ने 29 मार्च सन् 1857 को बैरकपुर में अपने साथियों को इस कृत्य के विरोध के लिए ललकारा और घोड़े पर अपनी ओर आते अंग्रेज़ अधिकारियों पर गोली चलाई. अधिकारियों के नज़दीक आने पर मंगल पाण्डे ने उन पर तलवार से हमला भी किया. उनकी गिरफ्तारी और कोर्ट मार्शल हुआ. आठ अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.

मंगल पांडे की फांसी के साथ पूरे देश में आंदोलन छिड़ गया. जगह-जगह अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगी. उस समय पहली बार लोगों को लगा कि वे गुलामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. मंगल पांडे के प्रयास का नतीजा था 1857 में भड़की क्रांति जो 90 वर्षों के बाद 1947 में भारत की पूर्ण-स्वतंत्रता का सबब बनी

No comments:

Post a Comment

Thank you!
Your comment will be published after admin approval.